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Explore the foundations of Sanatan Dharma and its significance.
Sanatan Dharma, often referred to as Hinduism, encompasses a rich tapestry of beliefs, rituals, and practices that have evolved over millennia. This article delves into its core tenets, emphasizing the universal principles of truth, righteousness, and duty. It highlights the philosophical contributions of ancient texts such as the Vedas, Upanishads, and Puranas, which form the bedrock of Sanatan thought. By understanding its profound teachings, individuals can appreciate the cultural and spiritual heritage that unites the people of India and Nepal, fostering a deeper connection to their shared history and values.
Discover the cultural connections that bind India and Nepal.
India and Nepal share a vibrant cultural heritage that dates back centuries, characterized by shared customs, languages, and religious practices. This article explores the various cultural exchanges, festivals, and traditions that are celebrated across the border. It discusses the significance of festivals like Dashain and Tihar, the influence of Nepali folk music in India, and vice versa. By promoting cultural awareness through events and conferences, the Nepal Bharat Maitri Sangathan plays a crucial role in strengthening these ties, fostering mutual respect and understanding among citizens of both nations.

Learn about initiatives for environmental protection and sustainability.
The Nepal Bharat Maitri Sangathan is committed to environmental sustainability through initiatives focused on tree plantation and the protection of natural resources. This article outlines the organization’s efforts in promoting eco-friendly practices, raising awareness about climate change, and encouraging communities to engage in conservation activities. It highlights successful tree plantation drives, workshops on sustainable practices, and partnerships with local organizations aimed at preserving the rich biodiversity found in both countries. Through these initiatives, the foundation strives to inspire a collective responsibility towards our planet.
Explore the importance of education in community development.
Education is a cornerstone of community development and empowerment. The Nepal Bharat Maitri Sangathan emphasizes sanskar-based education, which integrates cultural values into the learning process. This article discusses various educational programs designed to uplift underprivileged sections of society, including skill development workshops, literacy programs, and vocational training. By promoting education that aligns with cultural identity, the foundation aims to equip individuals with the knowledge and skills needed to thrive, thereby fostering self-reliance and community resilience in both India and Nepal.
एक कल्पना कीजिए तीस वर्ष का पति जेल की सलाखों के भीतर खड़ा है और बाहर उसकी वह युवा पत्नी खड़ी है जिसका बच्चा हाल ही में मृत हुआ है...इस बात की पूरी संभावना है कि अब शायद इस जन्म में इन पति-पत्नी की भेंट न हो. ऐसे कठिन समय पर इन दोनों ने क्या बातचीत की होगी. कल्पना मात्र से आप सिहर उठेगे--? जी हाँ-! मैं बात कर रहा हूँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे चमकते सितारे विनायक दामोदर सावरकर की ! ( सावरकर अपने समय के सबसे बड़े क्रांतिकारी थे मार्क्सवादी लेनिन भी कहीं टिकते नहीं थे) यह परिस्थिति उनके जीवन में आई थी, जब अंग्रेजों ने उन्हें कालापानी (अंडमान सेलुलर जेल ) की कठोरतम सजा के लिए अंडमान जेल भेजने का निर्णय लिया और उनकी पत्नी उनसे मिलने जेल में आईं। अद्भुत राष्ट्रभक्ति मजबूत ह्रदय वाले वीर सावरकर ( विनायक दामोदर सावरकर ) ने अपनी पत्नी से एक ही बात कही... तिनके-तीलियाँ बीनना और बटोरना तथा उससे एक घर बनाकर उसमें बाल-बच्चों का पालन-पोषण करना... यदि इसी को परिवार और कर्तव्य कहते हैं तो ऐसा संसार तो कौए और चिड़िया भी बसाते हैं. अपने घर-परिवार-बच्चों के लिए तो सभी काम करते हैं. मैंने अपने देश को अपना परिवार माना है, इसका गर्व कीजिए इस दुनिया में कुछ भी बोए बिना कुछ उगता नहीं है. धरती से ज्वार की फसल उगानी हो तो उसके कुछ दानों को जमीन में गड़ना ही होता है. वह बीच जमीन में, खेत में जाकर मिलते हैं तभी अगली ज्वार की फसल आती है. यदि हिन्दुस्तान में अच्छे घर निर्माण करना है तो हमें अपना घर कुर्बान करना चाहिए. कोई न कोई मकान ध्वस्त होकर मिट्टी में न मिलेगा, तब तक नए मकान का नवनिर्माण कैसे होगा.”, कल्पना करो कि हमने अपने ही हाथों अपने घर के चूल्हे फोड़ दिए हैं, अपने घर में आग लगा दी है. परन्तु आज का यही धुआँ कल भारत के प्रत्येक घर से स्वर्ण का धुआँ बनकर निकलेगा. यमुनाबाई, बुरा न मानें, मैंने तुम्हें एक ही जन्म में इतना कष्ट दिया है कि “यही पति मुझे जन्म-जन्मांतर तक मिले” ऐसा कैसे कह सकती हो.” यदि अगला जन्म मिला, तो हमारी भेंट होगी.. अन्यथा यहीं से विदा लेता हूँ.. ! ( उन दिनों यही माना जाता था, कि जिसे कालापानी की भयंकर सजा मिली वह वहाँ से जीवित वापस नहीं आएगा) पति पत्नी दोनों का क्रांतिकारी जीवन अब सोचिये, इस भीषण परिस्थिति में मात्र 25-26 वर्ष की उस युवा स्त्री ने अपने पति यानी वीर सावरकर से क्या कहा होगा ? यमुनाबाई (अर्थात भाऊराव चिपलूनकर की पुत्री) धीरे से नीचे बैठीं, और जाली में से अपने हाथ अंदर करके उन्होंने सावरकर के पैरों को स्पर्श किया. उन चरणों की धूल अपने मस्तक पर लगाई. सावरकर भी चौंक गए, अंदर से हिल गए... उन्होंने पूछा.... ये क्या करती हो?? अमर क्रांतिकारी की पत्नी ने कहा... “मैं यह चरण अपनी आँखों में बसा लेना चाहती हूँ, ताकि अगले जन्म में कहीं मुझसे चूक न हो जाए. अपने परिवार का पोषण और चिंता करने वाले मैंने बहुत देखे हैं, लेकिन समूचे भारतवर्ष को अपना परिवार मानने वाला व्यक्ति मेरा पति है... इसमें बुरा मानने वाली बात ही क्या है. यदि आप सत्यवान हैं, तो मैं सावित्री हूँ. मेरी तपस्या में इतना बल है, कि मैं यमराज से आपको वापस छीन लाऊँगी. आप चिंता न करें... अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें... हम इसी स्थान पर आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं...”! क्या जबरदस्त ताकत है... उस युवावस्था में पति को कालापानी की सजा पर ले जाते समय, कितना हिम्मत भरा वार्तालाप है... सचमुच, क्रान्ति की भावना कुछ स्वर्ग से तय होती है, कुछ संस्कारों से. यह हर किसी को नहीं मिलती। केवल सौ रुपये ने इतिहास बदल दिया वीर सावरकर को जब इंग्लैंड मे ब्रिटिश पुलिस इंडिया हाउस मे गिरफ्तार किया, उन्हे जल मार्ग से भारत लाया जा रहा था उस समय क्रांतिकारियों का कितना नेटवर्क मजबूत था की वे किस समय फ्रांस की सीमा पाहुचगे यह बात मैडम कामा लाइसे क्रांतिकारियों को पता था इंगलिश चैनल मे जब जलपोत पाहुचा सावरकर सौच के बहाने बाथरूम मे गए, बाथरूम का शीशा तोड़कर वे ब्रिटिश चैनल मे कूद पड़े बहुत देर हो गयी वे सौचालय से बाहर नहीं निकले जब दरवाजा तोड़ा गया बाथरूम खाली था वे कई किमी चैनल तैरकर फ्रांस की सीमा पर जा चुके थे जलयान पीछा कर चुका था, वे ज़ोर से चिल्लाये ''अरेष्ट मी - अरेष्ट मी'' फ़्रांस की पुलिस 'सावरकर' को गिरफ्तार कर चुकी थी तभी ब्रिटिश पुलिश भी पहुच गयी भारतीय क्रांतिकारियों को आने मे थोड़ा ही बिलंब हुआ था ''मैडम कामा'' के पहुचते ही ब्रिटिस पुलिस केवल सौ रुपये मे फ्रांस पुलिस को खरीद चुकी थी और 'वीर सावरकर' ब्रिटिस पुलिस के हवाले हो चुके थे, 'मैडम कामा' चिल्लाती रही ब्रिटिश पुलिस सावरकर को लेकर जा चुकी थी, काश सावरकर ब्रिटिश पुलिस के हाथ नहीं लगते तो भारतीय क्रांतिकारी कुछ अलग ही भारतीय स्वतन्त्रता का इतिहास लिखते--। दो-दो आजीवन कारावास वीर सावरकर को 50 साल की सजा देकर भी अंग्रेज नहीं मिटा सके, लेकिन कांग्रेस व मार्क्सवादियों ने उन्हें मिटाने की पूरी कोशिश की.. 26 फरवरी 1966 को वह इस दुनिया से प्रस्थान कर गए। लेकिन इससे केवल 56 वर्ष व दो दिन पहले 24 फरवरी 1910 को उन्हें ब्रिटिश सरकार ने एक नहीं, बल्कि दो-दो जन्मों के कारावास की सजा सुनाई थी। उन्हें 150 वर्ष की सजा सुनाई गई थी। वीर सावरकर भारतीय इतिहास में प्रथम क्रांतिकारी हैं जिन पर हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमा चलाया गया था। उन्हें काले पानी की सजा मिली। कागज व लेखनी से वंचित कर दिए जाने पर उन्होंने अंडमान जेल की दीवारों को ही कागज और अपने नाखूनों, कीलों व कांटों को अपना पेन बना लिया था, जिसके कारण वह सच्चाई दबने से बच गई, जिसे न केवल ब्रिटिश, बल्कि आजादी के बाद तथाकथित इतिहासकारों ने भी दबाने का प्रयास किया। पहले ब्रिटिश ने और बाद में कांग्रेसी-वामपंथी इतिहासकारों ने हमारे इतिहास के साथ जो खिलवाड़ किया, उससे पूरे इतिहास में वीर सावरकर अकेले मुठभेड़ करते नजर आते हैं। वर्तमान पीढ़ी को कुछ नहीं पता भारत का दुर्भाग्य देखिए, भारत की युवा पीढ़ी यहाँ तक नहीं जानती कि वीर सावरकर को आखिर दो जन्मों के कालापानी की सजा क्यों मिली थी ? जबकि हमारे इतिहास की पुस्तकों में तो आजादी की पूरी लड़ाई गांधी-नेहरू के नाम कर दी गई है, तो फिर आपने कभी सोचा कि जब देश को आजाद कराने की पूरी लड़ाई गांधी-नेहरू ने लड़ी तो ''विनायक दामोदर सावरकर'' को कालेपानी की सजा क्यों दी गई? उन्होंने तो भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और उनके अन्य क्रांतिकारी साथियों की तरह बम-बंदूक से भी अंग्रेजों पर हमला नहीं किया था तो फिर क्यों उन्हें 50 वर्ष की सजा सुनाई गई थी----!! उन्होने एक भी क्षण जाया नहीं किया 'वीर सावरकर' की गलती यह थी कि उन्होंंने कलम उठा ली थी और अंग्रेजों के उस झूठ का पर्दाफाश कर दिया जिसे दबाए रखने में न केवल अंग्रेजों का बल्कि केवल गांधी-नेहरू को ही असली स्वतंत्रता सेनानी मानने वालों का भी भला हो रहा था, अंग्रेजों ने 1857 की क्रांति को केवल एक सैनिक विद्रोह करार दिया था जिसे आज तक वामपंथी इतिहासकार ढो रहे हैं, '1857- क्रांति' की सच्चा्ई को दबाने और फिर कभी ऐसी क्रांति उत्पन्न न हो इसके लिए ही अंग्रेजों ने अपने एक अधिकारी ए.ओ.हयूम से 1885 में कांग्रेस की स्थापना करवाई थी, 1857 की क्रांति को कुचलने की जयंती उस वक्त ब्रिटेन में कांग्रेस द्वारा हर साल मनाई जाती थी और क्रांतिकारी नाना साहब, रानी लक्ष्मीबाई, तात्यां टोपे आदि को हत्यारा व उपद्रवी बताया जाता था, 1857 की 50 वीं वर्षगांठ 1907 ईस्वी में भी ब्रिटेन में ''विजय दिवस'' के रूप मे मनाया जा रहा था जहां वीर सावरकर 1906 में वकालत की पढ़ाई करने के लिए पहुंचे थे। क्रांतिकारी मन का उपयोग सावरकर को रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहब, तात्यां टोपे का अपमान करता नाटक इतना चुभ गया कि उन्होंने उस क्रांति की सच्चाई तक पहुंचने के लिए भारत संबंधी ब्रिटिश दस्तावेजों के भंडार 'इंडिया ऑफिस लाइब्रेरी' और 'ब्रिटिश म्यूजियम लाइब्रेरी' में प्रवेश पा लिया और लगातार डेढ़ वर्ष तक ब्रिटिश दस्तावेज व लेखन की खाक छानते रहे, उन दस्तावेजों के खंगालने के बाद उन्हें पता चला कि 1857 का विद्रोह एक सैनिक विद्रोह नहीं, बल्कि देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम था, इसे उन्होंने मराठी भाषा में लिखना शुरू किया, 10 मई 1908 को जब फिर से ब्रिटिश 1857 की क्रांति की वर्षगांठ पर लंदन में विजय दिवस मना रहे थे तो वीर सावरकर ने वहां चार पन्ने का एक पंपलेट बंटवाया, जिसका शीर्षक था 'ओ मार्टर्स' अर्थात 'ऐ शहीदों', इस पंपलेट द्वारा सावरकर ने 1857 को मामूली सैनिक क्रांति बताने वाले अंग्रेजों के उस झूठ से पर्दा हटा दिया जिसे लगातार 50 वर्षों से जारी रखा गया था, अंग्रेजों की कोशिश थी कि भारतीयों को कभी 1857 की पूरी सच्चाई का पता नहीं चले, अन्यथा उनमें खुद के लिए गर्व और अंग्रेजों के प्रति घृणा का भाव जग जाएगा। अंतर्राष्ट्रीय अदालत मे मुकदमा 1910 में सावरकर को लंदन में ही गिरफ्तार कर लिया गया, सावरकर ने समुद्री सफर से बीच ही भागने की कोशिश की लेकिन फ्रांस की सीमा में पकड़े गए, इसके कारण उन पर हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय अदालत में मुकदमा चला, ब्रिटिश सरकार ने उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाया और कई झूठे आरोप उन पर लाद दिए गए लेकिन सजा देते वक्त न्यायाधीश ने उनके पंपलेट 'ए शहीदों' का जिक्र भी किया था, जिससे यह साबित होता है कि अंग्रेजों ने उन्हें असली सजा उनकी लेखनी के कारण ही दी थी, देशद्रोह के अन्य आरोप केवल मुकदमे को मजबूत करने के लिए 'वीर सावरकर' पर लादे गए थे। 1857 स्वतंत्राय समर वीर सावरकर की पुस्तक '1857 का स्वातंत्र्य समर' छपने से पहले ही 1909 में प्रतिबंधित कर दी गई, पूरी दुनिया के इतिहास में यह पहली बार था कि कोई पुस्तक छपने से पहले की बैन कर दी गई हो, पूरी ब्रिटिश खुफिया एजेंसी इसे भारत में पहुंचने से रोकने में जुट गई, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही थी, इसका पहला संस्करण हॉलैंड में छपा और वहां से पेरिस होता हुए भारत पहुंचा। इस पुस्तक से प्रतिबंध 1947 में हटा, लेकिन 1909 में प्रतिबंधित होने से लेकर 1947 में भारत की आजादी मिलने तक अधिकांश भाषाओं में इस पुस्तक के इतने गुप्त संस्करण निकले कि अंग्रेज थर्रा उठे। विदेशो मे लोकप्रिय स्वतंत्राय समर भारत, ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, जापान, जर्मनी, पूरा यूरोप अचानक से इस पुस्तक के गुप्त संस्करणों से जैसे पट गया, एक फ्रांसीसी पत्रकार ई.पिरियोन ने लिखा--! ''यह एक महाकाव्य है, दैवी मंत्रोच्चार है, देशभक्ति का दिशाबोध है, यह सही अर्थों में राष्ट्रीय क्रांति थी, इसने सिद्ध कर दिया कि यूरोप के महान राष्ट्रों के समान भारत भी राष्ट्रीय चेतना प्रकट कर सकता है।'' हिंदुत्व की विजय ''और वे मुस्कराए कि ईसाइयो ने हमारी एक बात स्वीकार कर ही ली दो-दो आजीवन कारावास यानि हिन्दुत्व के पुनर्जन्म की अवधारणा स्वीकार कर ली-!''
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